शुक्रवार, 10 जून 2022

गृहस्थ संबंधी सदाचार 2


बुद्धिमान पुरुष वर्षा आदि के द्वारा होने वाले अन्नादि, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले स्वर्ण आदि, अकस्मात प्राप्त होने वाले द्रव्य आदि तथा सब प्रकार के धन भगवान के ही दिए हुए हैं-ऐसा समझकर प्रारब्ध के अनुसार उनका उपभोग करता हुआ संचय ना करें, उन्हें पूर्वोक्त साधु-सेवा आदि कर्मों में लगा दे।7.

मनुष्य का अधिकार केवल उतने ही धन पर हैं, जितने से उनकी भूख मिट जाए। इससे अधिक संपति को जो अपनी मानता है, वह चोर है, उसे दंड मिलना चाहिए।8

हरिन, ऊंट, गधा, बंदर,चूहा,सरीसृप(रेंग कर चलने वाले प्राणी), पक्षी और मक्खी आदि को अपने पुत्र के समान ही समझे। उनमें और पुत्रों में अंतर ही कितना है। 9

गृहस्थ मनुष्यों को भी धर्म, अर्थ और काम के लिए बहुत कष्ट नहीं उठाना चाहिए; बल्कि देश, काल और प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ मिल जाए,उसी से संतोष करना चाहिए 10

अपनी समस्त भोग सामग्री को कुत्ते, पतित और चांडाल पर्यंत सब प्राणियों को यथायोग्य बांटकर ही अपने काम में लाना चाहिए।और तो क्या, अपनी स्त्री को भी- जिसे मनुष्य समझता है कि यह मेरी हैं -अतिथि आदि की निर्दोष सेवा में नियुक्त रखें।11

लोग स्त्री के लिए अपने प्राण तक दे डालते हैं,यहां तक कि अपने मां बाप और गुरु को भी मार डालते हैं। उस स्त्री पर से जिसने अपनी ममता हटा ली उसने स्वयं नित्य विजयी भगवान पर भी विजय प्राप्त कर ली।12

यह शरीर अंत में कीड़े, विष्ठा या राखकी ढेरी होकर रहेगा। कहां तो यह तुच्छ शरीर और इसके लिए जिस में आसक्ति होती है वह स्त्री, और कहां अपनी महिमासे आकाशको भी ढक रखने वाला अनंत आत्मा।13



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