चित्रा,
जो लोग यह समझते हैं कि भगवान समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सब के आधार हैं और सर्वात्म भाव से भगवान भजन-सेवन करते हैं, वे मृत्यु को तुच्छ समझकर उसके सिरपर लात मारते हैं अर्थात उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग भगवान से विमुख है वह चाहे जितने बड़े विद्वान हो उन्हें भगवान कर्मों का प्रतिपादन करने वाली श्रुतियों से पशुओंके समान बांध लेते हैं। जो लोग भगवान के साथ प्रेम का संबंध जोड़ सकते हैं वह न केवल अपनेको बल्कि दूसरोंको भी पवित्र कर देते हैं अर्थात
मंगलवार, 14 जून 2022
शुक्रवार, 10 जून 2022
गृहस्थ संबंधी सदाचार 1
1.मनुष्य गृहस्थाश्रम में रहे और गृहस्थ धर्म के अनुसार सब काम करें परंतु उन्हें भगवान के प्रति समर्पित कर दें और बड़े-बड़े संत-महात्माओं की सेवा भी करें।
गृहस्थ संबंधी सदाचार 2
बुद्धिमान पुरुष वर्षा आदि के द्वारा होने वाले अन्नादि, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले स्वर्ण आदि, अकस्मात प्राप्त होने वाले द्रव्य आदि तथा सब प्रकार के धन भगवान के ही दिए हुए हैं-ऐसा समझकर प्रारब्ध के अनुसार उनका उपभोग करता हुआ संचय ना करें, उन्हें पूर्वोक्त साधु-सेवा आदि कर्मों में लगा दे।7.
मनुष्य का अधिकार केवल उतने ही धन पर हैं, जितने से उनकी भूख मिट जाए। इससे अधिक संपति को जो अपनी मानता है, वह चोर है, उसे दंड मिलना चाहिए।8
हरिन, ऊंट, गधा, बंदर,चूहा,सरीसृप(रेंग कर चलने वाले प्राणी), पक्षी और मक्खी आदि को अपने पुत्र के समान ही समझे। उनमें और पुत्रों में अंतर ही कितना है। 9
गृहस्थ मनुष्यों को भी धर्म, अर्थ और काम के लिए बहुत कष्ट नहीं उठाना चाहिए; बल्कि देश, काल और प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ मिल जाए,उसी से संतोष करना चाहिए 10
अपनी समस्त भोग सामग्री को कुत्ते, पतित और चांडाल पर्यंत सब प्राणियों को यथायोग्य बांटकर ही अपने काम में लाना चाहिए।और तो क्या, अपनी स्त्री को भी- जिसे मनुष्य समझता है कि यह मेरी हैं -अतिथि आदि की निर्दोष सेवा में नियुक्त रखें।11
लोग स्त्री के लिए अपने प्राण तक दे डालते हैं,यहां तक कि अपने मां बाप और गुरु को भी मार डालते हैं। उस स्त्री पर से जिसने अपनी ममता हटा ली उसने स्वयं नित्य विजयी भगवान पर भी विजय प्राप्त कर ली।12
यह शरीर अंत में कीड़े, विष्ठा या राखकी ढेरी होकर रहेगा। कहां तो यह तुच्छ शरीर और इसके लिए जिस में आसक्ति होती है वह स्त्री, और कहां अपनी महिमासे आकाशको भी ढक रखने वाला अनंत आत्मा।13
गुरुवार, 9 जून 2022
गृहस्थ ओं के लिए मोक्ष धर्म का वर्णन
जो लोग सदधर्म पालन की अभिलाषा रखते हैं उनके लिए इससे बढ़कर और कोई धर्म नहीं है कि किसी भी प्राणी को मन वाणी और शरीर से किसी प्रकार का कष्ट ना दिया जाए।8
इसी से कोई कोई यज्ञ तत्व को जानने वाले ज्ञानी ज्ञान के द्वारा प्रज्वलित आत्म संयम रूप अग्नि में इन कर्म मय यज्ञों का हवन कर देते हैं और बाह्य कर्म कलापो से ऊपरत हो जाते हैं।9
जब कोई इन द्रव्यमय यज्ञों से यजन करना चाहता है, तब सभी प्राणी डर जाते हैं; वे सोचने लगते हैं कि यह अपने प्राणों का पोषण करने वाला निर्दय मूर्ख मुझे अवश्य मार डालेगा।10
इसलिए धर्मज्ञ मनुष्य को यही उचित है कि प्रतिदिन प्रारब्ध के द्वारा प्राप्त मुनि जनोंचित हविष्यान्न से ही अपने नित्य और नैमित्तिक कर्म करें तथा उसी से सर्वदा संतुष्ट रहें।11
शनिवार, 19 मार्च 2022
15.ग्रहस्तों के लिए मोक्ष धर्म का वर्णन
उपनिषदों में कहा गया है कि
1.शरीर रथ है।
2.इंद्रियां घोड़े है।
3.इंद्रियों का स्वामी मन लगाम है।
4.शब्द आदि विषय मार्ग है।
5.बुद्धि सारथी है।
6.चित् ही भगवान के द्वारा निर्मित बांधने की विशाल रस्सी है।
7.दस प्राण धुरी है।
8.धर्म और अधर्म पहिए है।
9.इनका अभिमानी जीव रथी कहा गया है।
10. ओंकार ही उस रथी का धनुष हैं।
11.शुद्ध जीवात्मा बाण और
12.परमात्मा लक्ष्य हैं।
(इस ओंकार के द्वारा अंतरआत्मा को परमात्मा में लीन कर देना चाहिए)
राग, द्वेष, लोभ, शोक,मोह, मद,मान,अपमान, दूसरे के गुणों में दोष निकालना, छल, हिंसा, दूसरे की उन्नति देखकर जलना, तृष्णा,प्रमाद, भूख और नींद- यह सब और ऐसे ही जीवो के और भी बहुत से शत्रु है। उनमें रजोगुण और तमोगुण प्रधान वृत्तियां अधिक है,कहीं-कहीं कोई-कोई सतोगुण प्रधान ही होती है।
यह मनुष्य-शरीररूप रथ जब तक अपने वश में है और इसके इंद्रिय मन-आदि सारे साधन अच्छी दशा में विद्यमान है, तभीतक श्री गुरुदेव के चरण कमलों की सेवा-पूजा से शान धरायी हुई ज्ञान की तीखी तलवार लेकर भगवान के आश्रयसे इन शत्रुओं का नाश करके अपने स्वराज्य-सिंहासनपर विराजमान हो जाए और फिर अत्यंत शांतभाव से इस शरीरका परित्याग कर दे।
नहीं तो तनिक भी प्रमाद हो जाने पर इंद्रियरूप दुष्ट घोड़े और उनसे मित्रता रखने वाला बुद्धि रूप सारथी रथके स्वामी जीवको उल्टे रास्ते ले जाकर विषयरूपी लुटेरों के हाथों में डाल देंगे। वे डाकू सारथी और घोड़ों के सहित इस जीव को मृत्युसे अत्यंत भयावने घोर अंधकारमय संसारके कुएं में गिरा देंगे। देना चाहिए।)
मृत्यु को कैसे जीतें? वेद स्तुति चित्रा
1.जो लोग यह समझते हैं कि भगवान समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सब के आधार हैं और सर्वात्म भाव से भगवान का भजन-सेवन करते हैं, वे मृत्यु को तुच्छ समझकर उसके सिरपर लात मारते हैं अर्थात उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
The devotees who worship God as the shelter of all beings disregard Death and place their feet on his head.
Index
14. सदाचार 15.मोक्ष धर्म- अष्टम स्कंध
- मन्वंतर
- गजेंद्र
- स्तुति
- पूर्व चरित्र
- ब्रह्मा कृत स्तुति
- समुद्र मंथन
- विषपान
- मोहिनी अवतार
- अमृत बांटना
- संग्राम
- समझौता
- महादेव का मोहित होना
- आगामी सात
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1.जो लोग यह समझते हैं कि भगवान समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सब के आधार हैं और सर्वात्म भाव से भगवान का भजन-सेवन करते हैं, वे...
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जो लोग सदधर्म पालन की अभिलाषा रखते हैं उनके लिए इससे बढ़कर और कोई धर्म नहीं है कि किसी भी प्राणी को मन वाणी और शरीर से किसी प्रकार का कष्ट ...